रविदासिआ धरम की होंद कैसे, क्यों और कब हुई...?

                     सतिगुरु रविदास महाराज जी जब इस धरती पर अवतार लेकर आए उन्हों ने जहाँ जातीवाद -धरम, ऊंच-नीच का बहुत सामना किया। गुरु जी ने यह जात - पात ऊच - नीच रोकने के लिए बहुत संघर्ष किया और अपनी बानी में इंसानियत का सन्देश दिया और हर प्राणी के बराबरी के हक़ की बात की। जो आज भी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब और अमृतबानी में दर्ज है। उन्ही की बानी का एक शब्द :-

ऐसा चाहु राज मैं जहाँ मिले सबन को अन्न। 

शोट बड़े सब सम बसे रविदास रहे पर्सन।।

                    इस शब्द से पता चलता है के उस वकत समाज में कैसे हालात होंगे और इतिहास से भी पता चलता कि तब मनुवाद का पूरा जोर था जो गरीब लोगों को शूदर का दर्जा देकर उनकी परशाई से भी नफरत करते थे। हालात ऐसे थे कि कोई गरीब ( दलित ) मंदिर के पास भजन भी सुन ले उनको सजा के तोर पर कानो में सिक्का ढाल के डाल दिया जाता था और उनके नाखुनो में सुइआ चुभोई जाती थी। उनको मंदर के पास से भी गुजरने का हक़ नहीं था। शुआ छूत का बहुत पसेरा था। अगर कोई दलित इनके कुएं जा नदी में से पानी भी पी ले तो उसको मौत के घाट उतार दिया जाता था और वो बाद में अपने आप को गंगा जल जा गऊ मूतर पी पवित्र करते थे। दलित को शिक्षा लेने का अधिकार भी नहीं था। अगर कोई महान दलित गुरु शम्बूक जैसा प्रिशिक्षत मिल जाऐ तो उसे धर्म का अपमान कह कर कतल कर दिया जाता था। और दलित को सिर्फ अपना मलमूत्र उठाने के लिए रखा था जो मजबूर डर के कारण जे काम करते थे।

                    दलित की पीठ के पीछे झाढ़ू और शाती पे हांडी होती थी जिसका मतलब ना वो जमीन पर थूक सकते थे और झाड़ू इस लिए ता कि उनके पैरों के निशान उस झाढ़ू या झाढ़ि से मिट जाएँ। यह सब ऐसा इसलिए क्योंकि बराह्मनो के वेदों और धर्म ग्रंथो में ऐसा लिखा है यह वो मानते हैं। जिसमे चार वर्णो के आधार पे यह ग्रन्थ के द्वारा इंसानो को बांटा जाता था जैसे की :- ब्राह्मण , क्षत्रिये , वेश और शूद्र। जिसमे शूदर को नीच ठहराया गया है और उनको ग़ुलाम जैसी जिंदगी बातीत करनी पड़ती थी। 

                    जब गुरु जी ने यह सब देखा तो उन्हों ने उनके यह पाखंडवाद के खिलाफ आवाज उठाई तब भारत देश में कई राज्यों में मुग़ल राज भी आ चूका था और गुरु जी ने अपनी सोच और बानी से उन राजन को भी सीधे मार्ग पर डाला और पाखंडवाद को भी चन्ने चबाएं। वह एक क्रन्तिकारी संत भी कहाए। गुरु जी दलित लोगों के गुरु बन चुके थे जिनके आगे बढ़े बढ़े राजा सीस झुका चुके थे और गुरु जी को अपना गुरु मानते थे। आप सब ने उनकी सखिओं में भी और बानी में भी पढ़ा होगा।

                    अब 18 -19 वीं सदी तक वही दलित लोगों के साथ वैसे ही वह लोग ऊच नीच नफरत भरा व्यव्हार करते आ रहे थे। जिनको बाबा साहिब डॉ भीम राव आंबेडकर जी ने भी सहा और स्कूल में भी ऊच - नीच का सामना किया जिनको अकेले कक्षा के बाहर बेठा कर पढ़ना पढ़ा और बाबा साहिब को आशुत कह कर अपमानित करते थे। तब बाबा साहिब ने बहुत मुश्किल से इन प्रस्तिथिओ का सामना करते हुए इस देश का सविधान लिख डाला। और उन्हों ने सविधान में दलितों और औरतों को बराबरी का हक़ लेकर दिया। पूरी दुनिआ में बाबा साहिब जितना आज तक कोई उतनी एजुकेशन ( Degrees ) नहीं कर सका और वो देश के पहले कानून मंत्री भी रहे।

                    आखीर बाबा साहिब ने बुध धर्म अपनाया क्योंकि उनका कहना था कि जिस धर्म ने उसे इतना अपमानित किया और जहाँ इंसानियत और समानता नहीं मैं अब उस धरम में मरना नहीं चाहता। उन्हों ने और धर्मों में भी स्टडी की पर उन धर्मों में भी उनको समानता नहीं दिखी जैसे सिख धर्म , मुस्लिम धर्म , क्रिस्चन धर्म आदि। 

                    अब 20 वी सदी में वही दलित लोग बाबा साहिब की देन से हर मुकाम में आगे पढ़ लिख कर अफसर अधयापक आदि बन चुके हैं। और कई यूरोप में शिक्षत होकर सेटल हो चुके हैं। 20 वी सदी में दूसरे धर्मो के लोग फिर अपनी धाक ज़माने में लगें हैं जिसकी उदाहरण 24 मई, 2009 में ऑस्ट्रिया में चली गोली जिसमे कौम के महान गुरु श्री 108 संत रामानन्द महाराज जी शहीद हो गए थे और श्री 108 संत निरंजन दास महाराज जी जख्मी हो गए थे। जिस सब को देख कर अब रविदासीआ समाज एकजुट होकर अपना अलग रविदास्सीआ धर्म स्थापित करने में जुट गया है। जिनकी गिनती 25 करोड़ से भी ज्यादा है वह अब पूरी दुनीआ में यह फैसला ले चुके हैं। और वह 2021 की जनगणना में रविदासिआ कालम के लिए रास्टरपति और प्रधान मंत्री को प्रेस नोट दे चुकें हैं और निवेदन भी कर चुकें हैं। जिसका पूरा श्रेह धन धन दरबार श्री सचखंड बल्लां जालंधर के महान गद्दीनशीन श्री 108 संत निरंजन दास महाराज जी को जाता है जिन्होंने पूरे देश से साधु संप्रदाय को बुला मीटिंग कर यह फैसला लिया। जो यह दरबार भी अब भारत पंजाब का एक तीर्थ सथल भी बन चुका है। जिनकी देन से महान तीर्थ सथल श्री गुरु रविदास जनम स्थान बनारस कांशी में गुरुद्वारा सिरजा गया है। जहाँ हर साल श्री गुरु रविदास गुरुपुरब पर लाखों लोग नमस्तक होतें हैं। और संगत के लिए सचखंड बल्लां की और से जालंधर पंजाब से ट्रैन ( बेगमपुरा एक्सप्रेस ) का भी पूरा प्रबंध किया जाता है। 

                    अगर बाबा साहिब आज समाज के बीच होते या फिर तभ रविदासीआ धर्म होता तो वह रविदासीआ धर्म को ही अपनाते क्योंकि यहाँ समानता है और जात - पात ऊच - नीच का बोल बाला नहीं है। यहाँ सिर्फ लोग एक दूसरे को प्यार - सत्कार देतें हैं। 


रविदासीया धर्म का ग्रन्थ :- अमृतबानी 

रविदासीया धर्म का निशान :- हरि

रविदासीया धर्म का नाहरा :- जय गुरुदेव धन गुरुदेव। 

रविदासीया धर्म का तीर्थ सथल :- जनम सथल गुरु रविदास जी बनारस कांशी।


By Er. Pardeep Babloo 

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