जात पात एक कोहड़
मैं अपने नए किराए के मकान अंदर जाने ही लगा था कि पड़ोस में रहती आंटी ने मुझे रोक लिया और मेरे बारे में जानना चाहा ।मेरे शहर और मेरी नौकरी के बारे में जान कर अपने अंदर की आग जैसे जल रही भड़ास निकालती मुझे कहने लगी की बेटा जहां तू रहता है उस कमरे के ऊपर वाले मकान में वगैरा-वगैरा लोग ऐसी अनचाही बातों की झड़ी लगा दी जैसे उसकी मकान मालिक से किसी वजह से लगती हो...। मैं चुपचाप वहां खड़ा आंटी की बातें सुनता रहा।
आखिर में मुझे लगा की आंटी जी की आत्मा कब शांत हो गई है और यह सोच कर मैं चलने लगा तभी आंटी जी के गले में फिर जैसे रग में हड्डी फसी हो बाहर निकाली हो ऐसे फटाक से सवाल मेरे मुंह पे मारा कि बेटा तुम्हारी जात क्या है और आंटी अपना सवाल पूछ मेरे मुंह की ओर बिटर बिटर देखने लगी।
मुझे एक सेकंड मैं ही आंटी ने सोचो में डाल दिया के हमारा आसपास जात पात के कोहड़ से कितना लथपथ हुआ पड़ा है ।हमारे बुजुर्ग कैसे जे बुरी बीमारी को अपने की बच्चों की झोलियां में में डॉल रहे हैं।
मैं फिर संभालते हुए आंटी जी को प्यार से जवाब में कहा कि मैं जात पात को नहीं मानता हूं जैसे हमारे गुरु साहिबान कह गए हैं की "मानस की जात सब एक पहचानबो" कि ना मैं किसी को यह सवाल कभी पूछा है और ना ही कभी यह सवाल बता इस कोहड़ के टिके को माथे से लगाया है।
आंटी ने थोड़ी नामोशी यही से बात को घुमाते कहां के बेटा हम भी जात पात को नहीं मानते। मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया था। यह बात कहते आंटी अपनी ही बात में फंसी नजर आ रही थी और बहाना बनाकर अपने घर के अंदर जा बड़ी।
शायद आप भी इसको पढ़ के जान गए होंगे कि यह बीमारी को कैसे खत्म करना पड़ेगा हमें एकजुट होने की जरूरत है।
धन्यवाद।
By Pardeep Babloo