भारतीय लोगों की सड़कों पर दुर्दशा - भाग 1

       मेरा भारत देश महान ज्यादातर 26 जनवरी और 15 अगस्त को हर किसी की जुबान पर यह नाहरा होता है पर जब हम खुद समाज के बीच गुजरते हैं तो फिर हम भारत देश को भूलकर हम स्वार्थी हो जाते हैं भूल जाते हैं कि हम जिस देश को महान कह रहे हैं वह देश हम लोगों से ही बनता है। ऐसी कई उदाहरण हैं जो मैं आज आपके सामने रख रहा हूं जिस पर आपको खुद अहसास होगा कि जिस देश को हम भारत महान देश कहते हैं वो सिर्फ एक नक्शा नहीं है वह हम लोगों से ही बनता है क्या हम महान है...?

       बात में राजनीतिक और धार्मिकता से हटकर अपने सामाजिक कुरीतियों के ऊपर करूंगा जैसे कि हम लोग समाज में एक दूसरे के प्रति अपना क्या फर्ज निभा रहे हैं...? और खास बात सड़कों की आवाजाही की करूंगा और सड़कों पर चल रहे हैं भारतीय लोगों की मानसिकता की करुंगा।

       बीसवीं सदी चल रही है लोग बहुत एडवांस हो चुके हैं हर आदमी तरक्की के रास्ते पर हैं हर कोई एक दूसरे से आगे निकलने की दौड़ में है यह बहुत अच्छी बात है पर लोग अपनी इस भाग दौड़ में इतने मकबूल हो गए है कि वह दूसरों की परवाह करना भूल गए हैं।

       आज भारतीय लोग सड़कों पर भागते नजर आ रहे हैं यह नजारा हर रोज भारतीय सड़कों पर देखने में मिलता है यह दौड़ इतनी बढ़ गई है कि बड़े शहरों में हर 1 किलोमीटर के अंदर दुर्घटना हो रही है। कई लोगों की मानसिकता ऐसी है की इस देश में पैदल चलने वाले को गरीब समझा जाता है और गाड़ी वाले को अमीर। अब ऐसा लगने लगा है कि पैदल चलने वाले का तो सड़कों पर चलने का अधिकार खत्म हो रहा है ऐसा हर रोज देखने को मिलता है। पैदल चलने वाला सड़क पर ऐसे चलता है जैसे वो अकेला 100 शेरों के बीच में से गुजर रहा हो और गाड़ी बसों वाले तो पैदल चलने वाले को कठपुतली की तरह समझते हैं अगर सामने आ गया तो गाड़ी धीमी नहीं करेंगे बल्कि और तेज कर लेंगे और पैदल चलने वाला अपनी जान भागकर बचाता है। बुजुर्गों बच्चों और औरतों के लिए सड़क पार करना बहुत मुश्किल हो चुका है वह जान जोखम में लेकर सड़क पार करते हैं जा किसी नौजवान को आगे आकर सड़क पार करानी पड़ती है सरकार भी इस पर चिंता जाहिर नहीं कर रही। रेडलाइट सिर्फ बड़े शहरों के बड़े चौक ऊपर ही मिलती है। हम घर बैठे दूसरे देशों की तारीफ करते नहीं थकते के वहां पैदल चलने वाले को कितनी इज्जत दी जाती है जब हमारी बारी आती है तो हम खुद उन बातों पर खरे नहीं उतरते।

     आजकल भारत में बड़े होरन जैसे कि pressure Horn बजाने का रिवाज चल रहा है जिसमें ज्यादातर बस और ट्रक और मोटरसाइकिल शामिल है। सरकार की तरफ से कोई भी चालान काटने में कोई सरगर्मी नहीं पुलिस वाले सिर्फ helmet और seat belt के चालान के पीछे भाग रहे हैं और जो noise pollution बढ़ रहा है उस पर पुलिस जा सरकार ध्यान नहीं दे रही। आजकल सड़कों पर लोगों का व्यवहार ऐसा हो रहा है जैसे वह टांग खींच कर एक दूसरे को पीछे कर रहे हो के हट मुझे आगे निकलना है और होरन ऐसे बजा रहे हैं जैसे एक दूसरे को गाली दे रहे हो।

     भारत की सड़कों पर बिना होरन के चलना बहुत मुश्किल हो चुका है बिना होरन के कोई साइड नहीं देता क्योंकि यहां पर बहुत कम लोग हैं जिन्हें Road Sense है क्योंकि जहां लाइसेंस भी पैसे देकर बनता है बिना Exam के। कई लोग तो सड़कों पर गाड़ियां भी बिना side mirror और मोटरसाइकिल बिना side mirror के चला रहे हैं जिस पर कोई रोकथाम नहीं लग रही।

     अब भारत के कई राज्यों में ऑनलाइन लाइसेंस अप्लाई हो रहा है जिसका टेस्ट भी हो रहा है पर कई कर्मचारी एजेंट्स के साथ मिलकर लाइसेंस बना रहे हैं और लोग इस का गलत फायदा ले रहे हैं। मैं सरकार या प्रशासन के आगे बिनती करता हूं कि ऐसे एजेंट्स के ऊपर लगाम कसी जाए और बिना टेस्ट के किसी को लाइसेंस ना दिया जाए।

     और हां एम्बुलेंस (Ambulance) और फायर ब्रिगेड (Fire Brigade) को आप सब रास्ता जरूर दें चाहे गाड़ी साइड में लगा कर क्योंकि सही समय किसी की जान बच सकती है🙏


By Pardeep Babloo

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