बाबा जी की परीक्षा ( बाबा हरनाम दास जी से बाबा पिप्पल दास जी नाम हुआ ) Sachkhand Ballan

                    गाँव में जहाँ महाराज जी रहते थे  वहां एक पिप्पल का पेड़ था। उसके नीचे बाबा पिप्पल दास जी ने अपनी तपड़ी विशाई हुई थी। महाराज जी रहते हुए तक़रीबन 2 महीनो के आस पास हो गए थे। वह पिप्पल का पेड़ सूखा हुआ था।

                    गाँव वाले बाबा पिप्पल दास जी की परीक्षा लेने आये जो की यह साध जहाँ  से चला जाये, यह बात बनाई कि यह भी नहीं पता कि यह संत करनी वाले भी हैं या नहीं ? अगर पाखंडी होंगे तो अपने आप चले जायेंगे नहीं तो इस नगर में ही रहेंगे।  गाँव वालो कहा कि बाबा जी अगर आप जी यह पिप्पल का पेड़ हरा कर दो तो आप इस नगर में रह सकते हो और जिस मकान में आप रहते हो वो मकान आपका ही हुआ पर अगर आप यह पिप्पल का पेड़ हरा कर दो तो ही , नहीं तो आपको यह गाँव शोड कर जाना होगा। आप जी का नाम  हरनाम दास था।

                    बाबा पिप्पल दास जी ने कहा भाईओ वैसे तो सूखा पेड़ हरा नहीं होता पर आप इस तरह चाहते हो तो ठीक है। बाबा पिप्पल दास जी ने गाँव की संगत को बिनती की आप हमे 40 दिन का वक्फा (समह) दे दो।

                    बाबा पिप्पल दास जी ने पिप्पल के पेड़ के नीचे धूना लगाया हुआ था और तक़रीबन 40 दिन तक भजन बंदगी करते रहे और परमात्मा का नाम ले कर पिप्पल को पानी देते रहे। सूखा हुआ पिप्पल हरा  हो गया। गाँव वालो को इन्हो के सच्चे साधू होने का अब पूरा भरोसा हो गया। गाँव वालो ने महाराज जी की मानता करनी शुरू कर दी। जिस कारन आपका नाम बाबा पिप्पल दास जी पड़ गया।

                    अब यहाँ बाबा जी रहा करते थे वहां थोड़ी सी जगह खाली पड़ी हुई थी। बाबा जी को सलाह दी गई कि आप इस जगह का मुल दे दो हम बात करके आप जी को बताते हैं। गलबात करने पर उस जगह का मुल 60 रूपये पड़ा। उस आदमीओ को गाँव का ही एक आदमी 60  रूपये बार में दे के आया। अब डेरे की जगह 3 -4 मरले हो गई। 

                    पिप्पल हरा करने के बाद गाँव वालो ने बिनती की कि बाबा जी अब आप पेड़ के नीचे से उठ जाओ और हम सब आप जी से माफ़ी मांगते हैं। पर बाबा जी ने कहा कि हम अब थोड़े दिनों के बाद खुद ही उठ जाएँगे। फिर थोड़े समह के बाद बाबा जी खुद ही उठ गए। 

                    अब बाबा पिप्पल दास महाराज  मानता होने लगी। आप जी ने गाँव के लहन्दे पासे भजन करने जाया करते थे क्योंकि इधर शान्ति वाला इलाका था , जंगल था। हिरण की डारें और गीदड़ तो आम ही थे। ऊंचे ऊंचे टिब्बे भखड़ा, पोहली , मले भी आम ही थे पर पता नहीं आप जी के मन को क्यों ऐसी बात आई थी कि  संसार में चलते फिरते रहना ही अच्छा है। 

बाबा जी जब पुतर सरवन दास जी को गाँव बल्लां ले कर गए :-

                    प्रीतम पुत्तर मिल्खी राम जी ने आप जी के बारे यह भी बताया कि महाराज जी ने टांडे तक की यात्रा की। पर वहां जा कर पुत्तर सरवन दास जी की सेहत खराब हो गई जिस कारण बाबा पिप्पल दास महाराज जी को अपने पुतर सरवन दास जी को वापिस ले कर आना पड़ा। फिर वापिस आ कर आप जी चलते चलते गाँव सिंगड़ी वाला श्री लालू राम जी के घर पर जिला होशिआरपुर पहुंचे। यहाँ भी महाराज जी काफी दिन रहें। पर महाराज सरवन दास जी उदास रहने लगे। एक दिन पिता जी ने पूछा कि पुतर क्या बात है ? तुम उदास रहते हो ? महाराज जी ने कहा कि यहाँ मेरा मन नहीं लग रहा मुझे डेकां वाले गाँव ले चलो मेरा मन वहां लग जायेगा।

                    बाबा पिप्पल दास जी वहां से चल पड़े फिर गाँव समस्तपुर पहुंचे। पर डेकां वाला गाँव थोड़ा विसर चुका था। पर ढूढ़ते - ढूढ़ते गाँव बल्लां पहुंचे। यहाँ बच्चे खेल रहे थे और यहाँ डेकें थी यहाँ हजूर तक़रीबन 6 साल पहले अपने साथिओ के साथ खेलते थे। जैसे ही महाराज सरवन दास  जी ने अपने साथिओ को खेलते देखा तो कहा पिता जी यही ही डेकां वाला गाँव है और अपने साथिओं को गले से लगा कर मिलने लगे। जानकार बच्चे भी झटपट दौड़े और कहा सरवन आया सरवन आया और झटपट महाराज अपनी बचपन अवस्था अनुसार बच्चो से खेलने लग गए। खेलते - खेलते इतनी ख़ुशी हुई कि दौड़ कर पिता जी की टांगो को पकड़कर कहा कि पिता जी मैं अब किसी और जगह नहीं जाना।  मैं अब गाँव बल्लां ही रहूंगा और फिर जा कर अपने साथिओं के साथ खेलने लग गए।

में से :- वैरागय साखी सागर

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