दानो की मुठी - बाबा पिप्पल दास महाराज जी - Sachkhand Ballan
एक गाँव में गरीब परिवार रहता था। कनक की कटाई के समह घर के सभी सदस्य बीमार हो गए। कनक की कटाई नहीं होइ थी। जब सभी ठीक हो गए तब तक कटाई का काम ख़त्म हो चुका था यह साखी गाँव मंडा पंजाब की है। वह गरीब आदमी ने सोचा कि अब यह वर्ष कैसे गुजरे गए ? इधर बाबा पिप्पल दास जी गाँव मंडा गए। उस आदमी ने सारी अपनी समस्या गुरु जी को सुनाई। बाबा जी ने इक दानो की मुठ दी और लो इसको अपनी भड़ोली में डाल देना। साथ ही कहा की जितने दाने निकालने हो उतनी ही भड़ोली नंगी करनी है पूरा मुँह नहीं खोलना। उसने वोह दानो की मुठी भड़ोली में डाल दिया। घर वाले सारा साल ही दाने निकाल खाते रहे पर दाने ख़त्म नहीं हुंए। पर एक दिन उन्हों ने यह सोच कर कि इसमें और कितने दाने हैं खोल कर देख लिया। पर जब देखा तो भड़ोली उसे ही तरह भरी पड़ी हुई थी।
कहने का भाव कि कि संत एक आदमी के भंडारे को भर सकते हैं और उन्हों के घर किसी भी चीज की कमी नहीं होती। जैसे श्यामी राम जी के भंडारे को भी एक बचन से भर सकते हैं उन्हों के लिए एक भड़ोली इक मुठी से भरना कोई मुश्किल नहीं है।
में से - वैराग्य साखी सागर - 1