दबा हुआ खजाना - बाबा पिप्पल दास जी - Sachkhand Ballan
यह कथा बाबा पिप्पल दास जी की गाँव रहीम पुर पंजाब की है। एक माता जिसका नाम प्रेम कौर था। बाबा पिप्पल दास जी की सत्संगन थी। उन्हों ने नाम दान भी बाबा पिप्पल दास जी से ही प्राप्त किया था। माता जी विधवा थी और उसके 2 बच्चे थे लड़का और लड़की। एक वार बाबा पिप्पल दास जी को माता जी ने न्योता दिया। बेनती की कि आप जी ने प्रोमो गरीबनी के घर लंगर खाने आना है। घर में बहुत गरीबी थी। बहुत मुश्किल से गुजारा चलता था।
एक दिन बाबा पिप्पल दास जी गाँव रहीम पुर आये। माता जी ने बढ़ी श्रद्धा से लंगर शकाया। बाबा जी ने भी बहुत प्रेम से लंगर शका। माता प्रेमो जी ने दोनों हाथ जोड़ कर बेनती की कि महाराज हमारे घर बहुत गरीबी है , और मेरा पति भी नहीं है और 2 बच्चे हैं कोई साधन नहीं है। माता जी ने विरलाप करते आँखों में आंसू निकल आऐ। बाबा जी घट घट की जानने वाले उठे। कहा कि तेरे इस अपने घर में खजाना भरा हुआ है। अभी कही लाओ घर का वेहड़ा जहाँ से खोदो। सारी उम्र का खजाना जहाँ है। बाबा जी के सहमने ही माता जी ने कही से वो जगह खुदवाई जहाँ से एक देग चांदी से भरे हुए सिक्कों की मिली। माता जी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। माता बाबा जी के चरणों पर नमस्कार करने लगी। बाबा जी कहने लगे कि कुड़े प्रेमो तेरी गरीबी मालिक ने ख़त्म कर दी। मालिक बहुत बेअंत है वह खिन में ही रंक से राजा कर देता है।
बाबा पिप्पल दास महाराज जी ने माता प्रेमो की गरीबी काट दी। माता प्रेमो अपने अंत समह तक बाबा जी के चरणों नमस्तक करने आती रही।
में से - वैराग्य साखी सागर - 1