पांच पुत्तर गाँव अर्जनवाल - बाबा पिप्पल दस् महाराज जी - Sachkhand Ballan
यह कथा गाँव अर्जनवाल पंजाब की है। ज्ञानी जोगिन्दर सिंह तक़रीबन हर ऐतवार डेरे आते हैं। यह कथा उन्हों की सुनाई हुई है जिन्हो की माता प्रभि थी। पिता का नाम वरिआमा था। प्रभि को ससुराल में आए हुए 8 - 9 साल हो गए थे पर संतान नहीं थी हुई। सास कहती कि इसको शोड देना है इसके कोई संतान नहीं होनी। सास बहुत तंग करती थी और कहती कि लड़के की शादी कहीं और कर देनी है। माता जी बाबा पिप्पल दस् महाराज जी की बहुत मेहमाँ सुन चुकी थी और बाबा जी का बाबा जी का इंतजार करने लगी कि बाबा जी आएं और वह अपनी फर्याद उन्हों के आगे रखे। इधर बाबा पिप्पल दास जी ने एक दिन गाँव अर्जनवाल जाना था। जैसे ही माता प्रभि ने बाबा जी का आने का सुना तो वह सत्गुरों की उडीक करने लगी कि मेरे गुरु जी कब आएंगे।
बातये हुए समह अनुसार बाबा पिप्पल दास जी सवेरे गाँव अर्जनवाल पहुँच गए। माता प्रभि बहार निकली तो देखा कि बाबा जी आ रहें हैं। बस अपना सीस चरणों के ऊपर रख दिया। बेनती की कि महाराज मेरी सास मुझे कहती है कि तुझे शोड देना है तेरे संतान नहीं होनी। मेरा वासेबा करो। माता चरणों से लिपट गई। बाबा पिप्पल दास जी ने अपना पंजा माता की पीठ पर रख बचन किया कि जाह माता 5 पुत्रों की माँ होएंगी। बाबा जी के बचन से माता प्रभि के 5 पुत्तर हुए। जो सास पूछती नहीं थी वह प्रभि से बहुत प्रेम करने लगी। इन्हो में से ज्ञानी जोगिन्दर सिंह जी सब से बड़े बेटे हैं।
हमारे यह रिवाज है कि यदि बहू के बेटा न हो तो सास तायने मारने शुरू कर देती है। सो माता का घर बाबा पिप्पल दास महाराज जी ने वसा दिया।
में से - वैराग्य साखी सागर - 1