नामदान ( Nama Daan, Truth and way of God )
महाराज जी से एक इस्त्री कहती है, आप ने जो नामदान मुझे बक्शा है, वो वापिस ले लीजिये।
महाराज जी बोले क्यों?
इस्त्री कहने लगी भजन पे बैठती हूँ मन लगता नहीं, भजन होता नहीं और अगर भजन पर नहीं बैठती तो बेचैनी होती है, मूड ख़राब हो जाता है। अब आप बताये मै नामदान वापिस ना करू तो क्या करू?
महाराज जी बोले
बेटी एक शर्त पे मै दिया हुआ नामदान वापिस ले सकता हूँ?
इस्त्री बोली वो क्या शर्त है महाराज जी?
महाराज जी बोले, बेटी मै आटे में नमक डालता हूँ। आप उस आटे में से नमक अलग कर के दिखा दो फिर आप चाहो तो मै अपना दिया हुआ नामदान वापिस ले सकता हूँ। यह सुन कर इस्त्री महाराज के चरणो में गिर पड़ी। और उनकी बात को समझ गयी।
संगत जी, गुरु का बक्शा नाम एक रसायन की तरह हमारे तन मन वजूद में घुल जाता है, जो शिष्य का चोला छोड़ने तक मरते दम तक साथ रहता है।