प्रबल इच्छा (Dominant Desire) - Hazoor Bade Maharaaj Ji - Bias

जिक्र है कि हजूर बड़े महाराज जी ने अपने कार्यकाल में ज्यादातर सत्संग पाकिस्तान में दिए। पाकिस्तान में ही स्तिथ एक जगह है कालाबाग, जहाँ की संगत बड़ी प्रेमी थी। बंटवारे के बाद कुछ सत्संगी इधर पंजाब में आकर रहने लगे।

                    पकिस्तान के कालाबाग में अक्सर हजूर बड़े महाराज सत्संग देने जाते थे। कालाबाग के पास एक गाँव में एक बजुर्ग महिला जिसकी उम्र अस्सी साल से ऊपर थी को भी पता चला कि ब्यास वाले संत कालाबाग में सत्संग देने आने वाले है। उस बजुर्ग महिला ने अपने लड़के से कहा कि तुम मुझे कालाबाग ले चलो, वहां मैंने ब्यास वाले संत के दर्शन करने है और नामदान भी लेना है। 

                    लड़के ने कहा कि माता जी तुम्हे सांस लेने में दिक्कत आ रही है, इसीलिए वहां जाकर तक़लीफ़ हुई तो परेशानी हो सकती है। माता जी ने बहुत हठ किया। खैर लड़के ने अपनी बैलगाड़ी में एक बिस्तर लगाया, उस पर माता जी को लिटाया और कालाबाग की और चल पड़ा। रस्ते में माता जी का सांस उखड गया और उनकी मौत हो गई। लड़का बड़ा परेशान हुआ। खैर उसने बैलगाड़ी वापिस अपने गाँव की तरफ मोड़ ली।

                    उधर कालाबाग में हज़ूर बड़े महाराज जी सत्संग कर रहे थे। सत्संग के दौरान उन्होने सारी संगत को कहा कि आप सब लोग दस मिनट के लिए ध्यान में बैठो। हज़ूर बड़े महाराज जी भी ध्यान में बैठ गए। जब सत्संग समापत हो गया और हज़ूर अपने विश्राम ग्रह में चले गए तो वहां के कुछ प्रमुख लोग हज़ूर के पास विश्राम ग्रह में आये और कहने लगे कि आप ने दस मिनट के लिए सत्संग क्यों बंद किया था। हज़ूर महाराज जी ने टाल दिया। परन्तु वो लोग ना माने और जिद्द करने लगे।

                    हज़ूर बड़े महाराज जी ने फ़रमाया कि आपके पास ही एक गाँव में एक बजुर्ग महिला जो हमारे सतसंग में बड़े प्रेम और सच्चे मन से आ रही थी, उसकी रास्ते में ही मौत हो गयी। धर्मराज ने अपने यमदूत उसे लेने भेजे थे परन्तु क्योंकि उसकी सत्संग सुनने और नामदान लेने की प्रबल इच्छा थी, इसीलिए हमें उसे बचाने वहां जाना पड़ा। यमदूत कह रहे थे कि यह हमारा जीवन है, तो हज़ूर कहने लगे कि आप इसके घर से सत्संग वाले स्थान तक कदम गिन लो यदि आपके कदम ज्यादा बनते हो तो ले जाना नहीं तो मै ले जाऊँगा। 

                    हज़ूर ने फ़रमाया कि जब मैंने संगत को दस मिनट के लिए ध्यान में बिठाया तो कदमो की पैमायश चल रही थी। सत्संग की तरफ बीस कदम ज्यादा निकले, इसीलिए माता को ले जाने के लिए मुझे जाना पड़ा, हालांकि माता को केवल सत्संग एव नामदान की ख्वाइश ही थी। 

सोचो जो सतगुरु केवल सच्ची ख्वाइश पर ही जीवों का उधार करता है, वह हमें भी अपनी चरण शरण में लेकर एक दिन जरूर सचखंड का निवासी बनाएगा।

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