दानों की कोठी - संत बाबा पिप्पल दास महाराज जी - Sachkhand Ballan

                            यह कथा गाँव हरिपुर, पंजाब की है जहां बाबा पिप्पल दास जी महाराज जी अपने सेवक श्यामी राम जी के जाया करते थे। श्यामी राम जी की उम्र तकरीबन 125 साल की हुई है। एक वार श्यामी राम जी ने आप जी की बहुत सेवा की।  बाबा जी बहुत खुश हुए। उस वकत कनक की कटाई का मौसम था। घर वालों ने दाने सूखा कर साफ़ करके कोठी में डालने के लिए रखे हुए थे। वह तब दाने कोठी में डालने वाले ही  कि बाबा पिप्पल दास जी महाराज जी हरिपुर श्यामी राम जी के घर पहुंचे। बाबा जी ने कहा कि कुड़े बीबी आप दाने कोठी में खुद ना पाना हम खुद दाने आप पाएंगे। बाबा जी ने आप ही  धूफ दे के पांच बुक दानो के कोठी में पा दिएऔर बाकि के दाने बाद में डालें।  बाबा जी दानो की कोठी के आगे चारपाई रख बैठ गए। फिर बाबा जी ने बचन कर कहा जाओ आपके भंडारे भरे रहें। बचन किया कि इस कोठी में दाने डालने की जरुरत नहीं। कभी कोठी को खोल कर नहीं देखना। इस में से जितने मर्जी दाने निकाल खाते जाना। [ पुराने ज़माने में मिटटी की कोठीआं होती थी  ऊपर से लेप कर दिया जाता था और नीचे से दाने निकले जाते थे ]

                            श्यामी राम जी पूरा साल कोठी के नीचे दाने निकाल खाते रहे पर दाने ख़त्म होने में ना आये।  फिर कहीं जा कर सात साल बाद जब अगली कटाई का मौसम साया तो श्यामी राम जी ने कहा कि वह दाने तो देख ले कि कितने अभी बाकी रहतें हैं ? जैसे ही ऊपर कोठी का मुँह खोला तो देखा कि पूरी कोठी उसी तरह भरी पड़ी है। बाबा पिप्पल दास के पास श्यामी राम जी आये और कहा बाबा कहा बाबा जी कोठी में तो उतने ही दाने हैं। बाबा जी ने कहा के आप ने बचनों की उलंघना की है। हमने तो आपको कहा था कि कोठी को देखना नहीं। चाहे पूरी उम्र ही निकालते रहते। पर यह दुबारा नहीं हो सकता क्योंकि '' जो किछ पाया सो एका बार ''।

                            चाहे श्यामी राम जी पूरी उम्र दाने निकलते रहते  पर दाने ख़त्म नहीं होने थे। बाबा जी ने कहा कि अब तो दाने डालने पड़ेगे तो फिर निकाला करोगे।

में से - वैराग्य साखी सागर - 1

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