जैसा कर्म वैसा फल ( Guru's Lesson )
एक आदमी ने जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये है, उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे। यह सुनकर उसे बोहत आश्चर्य हुआ। अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सत्संग करने वाले संत जी से पूछा अगर कर्मो का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फ़ायदा है?
संत जी ने मुस्करा कर उसे देखा और इक ईट की तरफ इशारा करके कहा कि तुम इस ईट को छत्त पर ले जाकर मेरे सर पर फेंक दो यह सुनकर वह आदमी बोला इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा। मै यह नहीं कर सकता। संत ने कहा अच्छा, फिर उसे उसी ईट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बाँध कर दिया और कहा इसे ले जाकर मेरे सिर पे फेंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी??
वह बोला नहीं, संत ने कहा, बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इंसान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है.सत्संग में आने से इंसान का मन निर्मल होता है और वह मोह माया के चक्कर में होने वालो पापो से भी बचा रहता है और अपने सतगुरु की मौज में रहता हुआ एक दिन अपने निज घर सतलोक पोहंच जाता है।