दुखों से छुटकारा (Salvation of Sorrows) - Sant Farid ji
एक दिन एक उदास पति-पत्नी संत फरीद के पास पोहंचे। उन्होने विनय के सवर में कहा, 'बाबा, दुनिआ के कोने-कोने से लोग आपके पास आते है, वे आपसे खुशीआं लेकर लौटते हैं। आप किसी को भी निराश नहीं करते। मेरे जीवन में भी बोहत दुःख है मुझे उनसे मुकत कीजिये। फरीद ने देखा, सोचा और झटके से झोपड़े के सामने वाले खम्बे के पास जा पोहंचे। फिर खम्बे को दोनों हाथो से पकड़कर 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाने लगे। शोर सुनकर सारा गाओं इकठा हो गया लोगो ने पुछा कि क्या हुआ तो बाबा ने कहा 'इस खम्बे ने मुझे पकड़ लिए है, छोड़ नहीं रहा है। लोग हैरानी से देखने लगे, एक बजुर्ग ने हिम्मत कर कहा, बाबा सारी दुनिआ आपसे समझ लेने आती है और आप है कि खुद ऐसी नासमझी कर रहे हैं। फरीद खम्बे को छोड़ते हुए बोले, 'यही बात तो तुम सब को समझाना चाहता हूँ कि दुःख ने तुम्हे नहीं, तुमने ही दुखो को पकड़ रखा है। तुम छोड़ दो तो ये अपने आप छूट जायेंगे। उनकी इस बात पर गभीरता से सोचे तो इस निष्कर्ष पर पोहंचेगे कि हमारे दुःख तकलीफ इसीलिए है क्योंकि हमने वैसी सोच बना रखी है। सब