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Showing posts from May, 2020

दुखों से छुटकारा (Salvation of Sorrows) - Sant Farid ji

एक दिन एक उदास पति-पत्नी संत फरीद के पास पोहंचे। उन्होने विनय के सवर में कहा, 'बाबा, दुनिआ के कोने-कोने से लोग आपके पास आते है, वे आपसे खुशीआं लेकर लौटते हैं। आप किसी को भी निराश नहीं करते। मेरे जीवन में भी बोहत दुःख है मुझे उनसे मुकत कीजिये।                       फरीद ने देखा, सोचा और झटके से झोपड़े के सामने वाले खम्बे के पास जा पोहंचे। फिर खम्बे को दोनों हाथो से पकड़कर 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाने लगे। शोर सुनकर सारा गाओं इकठा हो गया लोगो ने पुछा कि क्या हुआ तो बाबा ने कहा 'इस खम्बे ने मुझे पकड़ लिए है, छोड़ नहीं रहा है। लोग हैरानी से देखने लगे, एक बजुर्ग ने हिम्मत कर कहा, बाबा सारी दुनिआ आपसे समझ लेने आती है और आप है कि खुद ऐसी नासमझी कर रहे हैं।                          फरीद खम्बे को छोड़ते हुए बोले, 'यही बात तो तुम सब को समझाना चाहता हूँ कि दुःख ने तुम्हे नहीं, तुमने ही दुखो को पकड़ रखा है। तुम छोड़ दो तो ये अपने आप छूट जायेंगे।                           उनकी इस बात पर गभीरता से सोचे तो इस निष्कर्ष पर पोहंचेगे कि हमारे दुःख तकलीफ इसीलिए है क्योंकि हमने वैसी सोच बना रखी है। सब

विश्वाश (Faith)

 आठ साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुठी में लेकर एक दूकान पर जाकर बोला, -- क्या आपके दूकान में ईश्वर मिलेंगे? दुकानदार ने ये बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।  बच्चा पास की दूकान में जाकर एक रुपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा! -- ए लड़के, 1 रूपए में तुम क्या चाहते हो? -- मुझे ईश्वर चाहिए। आपके दूकान में हैं? दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया। लेकिन उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दूकान से दूसरी दूकान , दूसरी से तीसरी, ऐसे करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने क बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पोहंचा।  उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा, -- तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर? पहली वार इक दुकानदार के मुँह से ये बात सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणे लहराई। लगता है इसी दूकान पर ईश्वर मिलेंगे! बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,  -- इस दुनिआ में माँ के इलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी माँ दिनंभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी माँ अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी माँ मर गयी तो मुझे कौन खिलायेगा? डॉक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी माँ को बचा

अनजाने कर्म का फल ( Karam's Definition - True Work Definition )

एक राजा ब्राह्मणो को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था। राजा का रसोइया खुले आंगन में भोजन पक्का रहा था। उसी समय एक चील अपने पंजे में एक ज़िंदा साप को लेकर राजा के महल के ऊपर से गुजरी। तब पंजो में दबे साप ने अपनी आतम-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से जहर निकला। तब रसोइया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पक्का रहा था, उस लंगर में साप के मुख से निकली जहर की कुछ बुँदे खाने में गिर गई। किसी को कुछ पता नहीं चला। फल-सवरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे, उन् सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी। अब जब राजा को सारे ब्राह्मणो की मृत्यु का पता चला तो ब्राह्मण-हत्या होने से उसे बोहत दुःख हुआ। ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैंसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा? 1) राजा। .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है...  या  2) रसोइया। ..... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है.....  या  3) वह चील..... जो जहरीला साप लिए राजा के महल के ऊपर से गुजरी...  या  4) वह सांप। .... जिसने अपनी आतम रक्षा में जहर निकाला। ....  बोहत दिंनो तक

जैसा कर्म वैसा फल ( Guru's Lesson )

    एक आदमी ने जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये है, उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे। यह सुनकर उसे बोहत आश्चर्य हुआ। अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सत्संग करने वाले संत जी से पूछा अगर कर्मो का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फ़ायदा है?                                                              संत जी ने मुस्करा कर उसे देखा और इक ईट की तरफ इशारा करके कहा कि तुम इस ईट को छत्त पर ले जाकर मेरे सर पर फेंक दो यह सुनकर वह आदमी बोला इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा। मै यह नहीं कर सकता। संत ने कहा अच्छा, फिर उसे उसी ईट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बाँध कर दिया और कहा इसे ले जाकर मेरे सिर पे फेंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी??                                                              वह बोला नहीं, संत ने कहा, बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इंसान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है.सत्संग में आने से इंसान का मन निर्मल होता है और वह मोह माया के चक्कर में होने व