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जनेऊ संस्कार - Sakhi Shri Guru Nanak Dev Ji - Guru ki sakhiyan

                        अगर कोई धरम या संस्कार आदमी औरत दोनों को बराबरी  अधिकार नहीं देता तो ऐसे रिवाज या संस्कार को उसी समह बंद कर देना चाहिए। एक ऐसा ही संस्कार है जनेऊ जो सिर्फ आदमी के लिए है और औरत को यह कबूल नहीं करता। इसी लिए श्री गुरु नानक देव जी ने इस संस्कार को धारण करने से मना कर दिया था। ऐसे असमान्य संस्कार जैसे सुनत को भी संत स्वामी कबीर जी ने मना कर दिया था क्योंकि सुनत सिर्फ आदमी की होती है औरत की नहीं हो सकती।                         श्री गुरु नानक देव जी जब 10  साल की उम्र के हुए तब पिता कालू जी ने जनेऊ धारण करने की रस्म को पूरे रीती रिवाज से समारोह किया जिसमे कारज करने के लिए पांधा पंडल को बुलाया। जनेऊ की शास्त्री विद्या के अनुसार जब पंडित गुरु साहिब को जनेऊ पहनाने के लिए आए तो बालक गुरु नानक जी ने पंडित का हाथ पकड़ लिया और पूछा कि आप मुझे जनेऊ धारण कराने जा रहे हो उसका मुझे मुनाफा क्या होगा ? तब पंडित  हैरान होकर गुरु साहिब की और  देखने लगा क्योंकि अब तक  उनसे किसी ने ऐसा सवाल कभी नहीं पुछा था। पंडित जी ने सस्त्रो हिसाब से लाभ बताने लगे कि यह कोई धागा नहीं पवित्र जनेऊ