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जन्म स्थान , जीवन साखी और परिवार ( Birth place , Life Story and Family ) Baba Pipal Dass Maharaj Sachkhand Ballan

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                    बाबा पिप्पल दास जी का जन्म गाँव गिल्ल पत्ती जिला बठिंडा विखे हुआ । आप जी के जन्म समय से ही चिहन परमात्मा की भगति करने वाले थे। आप जी के माता पिता जी आप जी से बहुत प्यार करते थे। भगति का जज्बा परमात्मा की किरपा से बचपन से ही मन में भरा हुआ था।                     बचपन में 6 - 8 साल की अवस्था में आप जी ने गुरमुखि की विद्या और नामदान की दीक्षा संत मोहन दास उदासी संतो से प्रपात की। गुरमुखि सीखने के साथ - साथ धार्मिक किताबों , जैसे गुरु ग्रन्थ साहिब ( Guru Granth Sahib )  की कथा , एकांत में बैठना और ग्रंथो को पढ़ना आप जी को बहुत पसंद था। आप जी ने प्रभु भगति को अपने जीवन का आधार बनाया हुआ था और प्रभु भगति में ही मगन रहते थे। आप जी के पूर्वज यानि दादा जी गाँव कुतिवाला के वसनीक थे। फिर  थोड़ा समय गाँव जोगानंद रहकर गाँव गिल्ल पत्ती आ कर बस गए।                          बीबी सुरजीत कौर पत्नी श्रीमान मोघा सिंह वासी गाँव मोड़ बठिंडा , के बताने मुताबिक बाबा योदा जी , बाबा हरनाम दास जी ( बाबा पिप्पल दास जी ) के पिता जी थे और गाँव कुतिवाल के निवासी थे। और इन्हो के पास 8 एकड़ जमीन थी।

सात दिनों बाद मौत - Sakhi Baba Pipal Dass Maharaj Ji - Sachkhand Ballan

                     बाबा पिप्पल दास जी की भविष्यवाणी के बचन बहुत सुने हैं । आप जी होने वाली बात पहले ही मुंह पर कह देते थे । यह साखी ब्यास  गांव की है । एक नौजवान लड़की अपने सिर पर भक्ता ( रोटियां ) उठाकर अपने खेतों को जा रही थी । बाबा जी गांव से गुजर रहे थे साथ में कुछ सत्संगी थे । बाबा पिप्पल दास जी उस लड़की की ओर इशारा कर कहने लगे कि जितना मर्जी मटक मटक कर चल ले तुमने सात दिनों बाद मर जाना है।                          सत्संगी पूछने लगे कि  महाराज जी आप जी ने पहले ही क्यों बता दिया ? तो महाराज जी कहने लगे कि  हमने तो इसके मस्तक के लेख पढ़कर बताएं । कुछ सेवादार गांव वालों को कहने लगे के बाबा जी इस लड़की के  बारे में इस तरह कह रहे हैं कि इसने 7 दिनों के बाद मर जाना है।                          जब सातवां दिन आया तो लड़की के पेट में दर्द हुई, मर गई। बाबा जी का बचन सच्चा हुआ। महाराज सरवन दास जी अपने पिता जी की इस तरह की भविष्यवाणी से नाराज हुआ करते थे कि आप जी इस तरह ना बताया करो लोग इस तरह अच्छा नहीं समझते । पर बाबा पिप्पल  दास महाराज जी सच्ची बात कहने में कोई गुरेज नहीं करते थे। [ यह

भजन-सिमरन (Praise to God)

एक शख्स  सुबह सवेरे उठा। उसने साफ़ कपडे पहने और सत्संग घर की तरफ निकल गया तांकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके।                          चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा, कपडे कीचड में सन गए। वो वापिस घर आया, कपडे बदल कर वापस सत्संग की तरफ रवाना हुआ। फिर ठीक उसी जगह ठोकर खाकर गिर पड़ा और वापिस घर आकर कपडे बदले। फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया। जब तीसरी वार उस जगह पर पोहंचा तो क्या देखता है कि एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे चलने के लिए कह रहा है।                         इस तरह वह शख्स उसे सत्संग घर के दरवाजे तक ले आया। पहले वाले शख्स ने उससे कहा कि आप भी अंदर आकर सत्संग सुन लें। लेकिन वह शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नहीं हुआ। दो तीन वार इंकार करने पर उसने पुछा आप अंदर क्यों नहीं आ रहे है?                         दुसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसीलिए क्योंकि मै काल हूँ"। यह सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना ना रहा। काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था। जब आपने घर जाकर कपडे बदले और दोबारा सत्सं

चार दिन का मेहमान - Sakhi Baba Pipal Dass Maharaj Ji Sachkhand Ballan

                           यह साखी गाँव बल्लां की है । बंनता राम, जस्सा राम और मस्सा राम तीन भाई थे। एक दिन बाबा पिप्पल दास जी इन्हों के घरों के आगे से जा रहे थे तो बाबा जी ने खेलते बच्चों की और देखा। कुछ बजुर्ग पास बैठे थे तो बाबा जी ने पूछा कि यह किसकी औलाद हैं ? तो एक बजुर्ग ने बताया कि यह तो फलाणे का अंश है। यह सुन कर बाबा जी ने कहा कि बंनता राम तो चार दिन का मेहमान ही है। बाकी मस्सा राम और जस्सा राम के घर कभी दाने ख़त्म नहीं हुआ करेंगे और इस वकत इन दोनों की उम्र कर्मवार 80 और 85 साल की होगी। यह बचन कह कर बाबा जी आगे चल पड़े। ठीक चार दिनों के बाद श्री बंनता राम की मौत हो गई। बाबा पिप्पल दास जी का बचन अटल हुआ। श्री लेहिंबर राम जी ने बताया कि बाबा जी के बचनो के अनुसार हमारे कभी दाने ख़त्म नहीं हुएं हमेशा बढ़ोतरी ही रहती है।  { यह तो आम ही बात प्रसिद्ध हो गई थी कि बाबा पिप्पल दास जी ना सिर्फ सत्संग और भजन करते थे बल्कि बहुत सी साखिओं में सांगत जी ने पढ़ा होगा कि बाबा पिप्पल दास जी सिर्फ वाक् ( बचन ) ही दे कर अपनी संगत का कारज ( भला ) कर देते थे } इसी करके उन्हों के बचनो से संगत बहुत लाभ ले

बाबा जी की परीक्षा ( बाबा हरनाम दास जी से बाबा पिप्पल दास जी नाम हुआ ) Sachkhand Ballan

                    गाँव में जहाँ महाराज जी रहते थे   वहां एक पिप्पल का पेड़ था। उसके नीचे बाबा पिप्पल दास जी ने अपनी तपड़ी विशाई हुई थी। महाराज जी रहते हुए तक़रीबन 2 महीनो के आस पास हो गए थे। वह पिप्पल का पेड़ सूखा हुआ था।                         गाँव वाले बाबा पिप्पल दास जी की परीक्षा लेने आये जो की यह साध जहाँ  से चला जाये, यह बात बनाई कि यह भी नहीं पता कि यह संत करनी वाले भी हैं या नहीं ? अगर पाखंडी होंगे तो अपने आप चले जायेंगे नहीं तो इस नगर में ही रहेंगे।  गाँव वालो कहा कि बाबा जी अगर आप जी यह पिप्पल का पेड़ हरा कर दो तो आप इस नगर में रह सकते हो और जिस मकान में आप रहते हो वो मकान आपका ही हुआ पर अगर आप यह पिप्पल का पेड़ हरा कर दो तो ही , नहीं तो आपको यह गाँव शोड कर जाना होगा। आप जी का नाम  हरनाम दास था।                         बाबा पिप्पल दास जी ने कहा भाईओ वैसे तो सूखा पेड़ हरा नहीं होता पर आप इस तरह चाहते हो तो ठीक है। बाबा पिप्पल दास जी ने गाँव की संगत को बिनती की आप हमे 40 दिन का वक्फा (समह) दे दो।                         बाबा पिप्पल दास जी ने पिप्पल के पेड़ के नीचे धूना लगाया हुआ था

आखरी सत्संग - Sakhi Baba Jaimal Singh Maharaj Ji

                        साध संगत जी यह साखी से पंजाब की संगत तो अवगत है लेकिन जो पंजाब के बाहर की प्यारी संगत है वह इस साखी से अवगत नहीं है। हमने सोचा के आपको हम इस साखी के बारे में जरूर रुबरू कराएं।                         25 अक्टूबर 1903 को बाबा जी महाराज (बाबा जैमल सिंह जी महाराज ) ने आखरी सत्संग किया। संत्संग करने से पहले उन्होंने बता दिया कि " साध संगत जी आज जो सत्संग होगा वोह मेरा आखरी सत्संग होगा।  इसके बाद मैं सत्संग नहीं करूँगा जो मेरे बाद जो इस गद्दी पर बैठे गा , वही सत्संग करेगा। मुझे अकाल पुरख वाहिगुरु का हुकम है कि मैं सत्संग  करूं ( बानी कहती है कि " जैसी आवे खसम की बानी तेसरा करी ज्ञान वे लाओ "  अर्थात जो वाहिगुरु अपने हुकम से मेरे से बुलवा रहा है मैं वही बोल रहा हूँ )                         तो आप बता दो कि मैं किस बानी पर सत्संग करूँ वही मैं आपको सुना देता हूँ क्योंकि इसके बाद मैंने सत्संग नहीं करना।                          इतना कहने पर एक सिख उठा और कहने लगा कि हजूर  सच्चे पातशाह हमारी बुद्धि कोई काम नहीं करती है , हमारी क्या औकात है हम  आपको बताएं कि

अरदास (Pray)

रात के 2 का समय था। एक आदमी को नींद नहीं आ रही थी। उसने चाय पी, टीवी देखा, इधर उधर घूमने लगा पर फिर भी उसे नींद नहीं आई।                          आखिर थक के उसने नीचे आकर अपनी गाडी निकाली और शहर की तरफ निकल गया। उसने रस्ते में एक गुरद्वारा साहिब देखा और सोचने लगा कि क्यों ना यहाँ थोड़ी देर रुक के भगवान् को अरदास करूं, शायद मन को शान्ति मिल जाये। वो जब अंदर गया तो उसने देखा कि एक आदमी वहां पहले से ही बैठा हुआ था जो बहुत उदास दिख रहा था और उसकी आखों में पानी भी था।                          उसने उस उदास आदमी को पुछा, तुम यहाँ इतनी रात को क्या कर रहे हो?                          उदास आदमी बोला, मेरी पतनी हस्पताल में है। सुबह उसका ऑपरेशन है और अगर ऑपरेशन नहीं हुआ तो वो मर जाएगी। मेरे पास ऑपरेशन के लिए पैसे भी नहीं है।                         ये बात सुनकर पहले आदमी ने अपनी जेब में हाथ डाला और जितने पैसे जेब से निकले वो उदास आदमी को दे दिए। अब उदास आदमी के चहरे पर ख़ुशी दिखने लगी। साथ ही पहले आदमी ने उस उदास आदमी को अपना कार्ड दिया और कहा कि इसमें मेरा पता, नंबर दोनों है। अगर और पैसो की जरुरत

प्रबल इच्छा (Dominant Desire) - Hazoor Bade Maharaaj Ji - Bias

जिक्र है कि हजूर बड़े महाराज जी ने अपने कार्यकाल में ज्यादातर सत्संग पाकिस्तान में दिए। पाकिस्तान में ही स्तिथ एक जगह है कालाबाग, जहाँ की संगत बड़ी प्रेमी थी। बंटवारे के बाद कुछ सत्संगी इधर पंजाब में आकर रहने लगे।                         पकिस्तान के कालाबाग में अक्सर हजूर बड़े महाराज सत्संग देने जाते थे। कालाबाग के पास एक गाँव में एक बजुर्ग महिला जिसकी उम्र अस्सी साल से ऊपर थी को भी पता चला कि ब्यास वाले संत कालाबाग में सत्संग देने आने वाले है। उस बजुर्ग महिला ने अपने लड़के से कहा कि तुम मुझे कालाबाग ले चलो, वहां मैंने ब्यास वाले संत के दर्शन करने है और नामदान भी लेना है।                          लड़के ने कहा कि माता जी तुम्हे सांस लेने में दिक्कत आ रही है, इसीलिए वहां जाकर तक़लीफ़ हुई तो परेशानी हो सकती है। माता जी ने बहुत हठ किया। खैर लड़के ने अपनी बैलगाड़ी में एक बिस्तर लगाया, उस पर माता जी को लिटाया और कालाबाग की और चल पड़ा। रस्ते में माता जी का सांस उखड गया और उनकी मौत हो गई। लड़का बड़ा परेशान हुआ। खैर उसने बैलगाड़ी वापिस अपने गाँव की तरफ मोड़ ली।                         उधर कालाबाग में हज़ूर ब

परमात्मा से मिलाप ( Union with the Divine )

एक आठ साल का छोटा सा बच्चा अक्सर परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो परमात्मा के साथ खाये।                          एक दिन उसने 1 थैले में 5-6  रोटियां रखी और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा। चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया। संध्या का समय हो गया। उसने देखा नदी के तट पर एक बजुर्ग बूढ़ा बैठा है। ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इंतज़ार में वहां बैठा उसका रास्ता देख रहा हो।                         वो आठ साल का मासूम बालक, बजुर्ग बूढ़े के पास जा कर बैठ गया। अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया और उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढ़े की और बढ़ाया और मुस्करा के देखने लगा, बूढ़े ने रोटी ले ली। बूढ़े के झारूरियों वाले चेहरे पर अजीब सी ख़ुशी आ गयी। आँखों में ख़ुशी के आँसू भी थे। बच्चा बूढ़े को देखे जा रहा था। जब बूढ़े ने रोटी खा ली तो बच्चे ने एक और रोटी बूढ़े को दी।                         बूढ़ा अब बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और सनेह के पल बिताये। जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत ले घर की और चलने लगा। वो बार बार पीछे मुड़ कर देखता, तो पाता बजुर्ग ब

दंड ( A Little Boy, Punishment )

अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था, जो स्टोर में चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकडे जाने पर गार्ड की गिरफत से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। जज ने जुर्म सुना और लड़के से पुछा,"तुमने क्या सचमुच कुछ चुराया था, ब्रेड और पनीर का पैकेट"? लड़के ने नीचे नज़रे कर के जवाब दिया, हां। जज ने पुछा, क्यों? लड़का ने कहा, मुझे जरुरत थी। जज- खरीद लेते। लड़का- पैसे नहीं थे। जज- घर वालो से ले लेते? लड़का- घर में सिर्फ माँ है जो बीमार और बेरोजगार है, पनीर और ब्रेड भी माँ के लिए चुराई थी। जज- तुम कुछ काम नहीं करते? लड़का- करता था, एक कार वाश में। माँ की देखभाल के लिए इक छुट्टी ली थी, तो मुझे निकाल दिया गया। जज- तुम किसी से मदद मांग लेते। लड़का- सुबह से घर से निकला था, तक़रीबन 50 लोगों के पास गया, बिलकुल आखिर में यह कदम उठाया।                          जिरह ख़तम हुई, जज ने फैंसला सुनाना शुरू किया, 'चोरी और ख़ुसूसन ब्रेड की चोरी बोहत शर्मनाक जुरम है और इस जुर्म के हम सब जिम्मेदार है। अदालत में मौजूद हर शकस मेरे सहित मुजरिम है, इसीलिए यहाँ मौजूद हर शख्स पर दस-दस डॉलर का जुरमाना लगाया जाता है।

अच्छाई पलट - पलट कर आती रहती है - A True Story of Sir Randolph Fleming - Winston Churchill

                        ब्रिटैन के स्कॉटलैंड में फ्लेमिंग ( Fleming )नाम का एक गरीब किसान रहता था। एक दिन वह अपने खेत पर काम  कर रहा था। एक दिन वह अपने खेत पर काम कर रहा था। अचानक पास में से किसी के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी। किसान  अपना साजो सामान व औजार फेंका और तेजी से आवाज की तरफ भागा।                          आवाज की दिशा में जाने पर उसने देखा कि एक बच्चा दलदल में डूब रहा था। वह बालक कमर तक कीचड़ में फंसा हुआ बहार निकलने के लिए संगर्ष कर रहा था। वह डर  मारे बुरी तरह कांप रहा था और चिल्ला रहा था।                          किसान ने आस पास में लंबी टहनी ढूंढी। अपनी जान पर खेलकर उस टहनी के सहारे बच्चे को बाहर निकाला। अगले दिन उस किसान की छोटी सी झोपडी के सामने एक शानदार  गाड़ी आकर खड़ी हुई। उसमें से कीमती वस्त्र पहने हुए एक सज्जन उतरे।                          उन्होंने किसान को अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं उस बालक का पिता हूँ और नाम रैन्डोल्फ चर्चिल ( Randolph Churchill  ) है। फिर उस अमीर रैन्डोल्फ चर्चिल ने कहा कि वह इस एहसान का बदला चुकाने आए हैं।                     फलेमिंग ( Fleming

भक्ति में श्रद्धा और निष्ठां की जरुरत है - Sant Kabir Sahib Ji- Guru ki Sakhian

                    कबीर साहिब एक दिन गंगा के किनारे घूम रहे थे। उन्होंने देखा एक पपीहा प्यास से बहाल होकर नदी में गिर गया है। पपीहा स्वांति नक्षत्र में बरसने वाली वर्षा की बूंदो के इलावा और कोई पानी नहीं पीता।                          उसके चारों और कितना ही पानी मजूद क्यों न हो उसे चाहे कितनी ही जोर से प्यास क्यों न लगी हो वह मरना मंजूर करेगा परन्तु और किसी पानी से अपनी प्यास नहीं बुझायेगा।                         कबीर साहिब नदी में गिरे हुए उस पक्षी की और देखते रहे। सख्त गर्मी पढ़ रही थी पर नदी के पानी की बूँद भी नहीं पी।                         उसे देख कर कबीर साहिब ने कहा :- जब में इस छोटे से पपीहे की वर्षा के निर्मल जल के प्रति भक्ति  श्रद्धा और निष्ठां देखता हूँ कि प्यास से मर रहा है। लेकिन जान बचाने के लिए नदी का पानी नहीं पीता तो मुझे मेरे ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति तुच्छ लगने लगती है।                     पपीहे का मन देख के, धीरज रही न रंच।                          मरते दम जल का पड़ा, तोउ न बोडी चंच।।                         अगर हर भकत को अपने परमेश्वर के प्रति पपीहे जैसी तीव्र

निर्भर (Dependent)

                         एक बार गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गयी। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबें पाँव बढ़ रहा है।                          वह डर के मारे इधर उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।                         वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमे पानी कम् था और वह कीचड से भरा हुआ था। उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम् थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड के अंदर धीरे-धीरे धसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड के अंदर फंस गए।                         दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ पकड़ नहीं पा रहा था। थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पुछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघ ने गरारते हुए कहा, मै तो जंगल का राजा हूँ। मेरा कोई मालिक नहीं है। मै खुद ही जंग

कर्मो की दौलत (Wealth of Deeds)

                         एक राजा था , जिसने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकठ्ठा करके (एक तरह का शाही खजाना) आबादी से बाहर जंगल में एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने में सारे खजाने को खुफ़िआ तोर पर छुपा दिया था। खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी। एक चाबी राजा के पास और एक उसके ख़ास मंत्री के पास थी।  इन दोनों के आलावा किसी को भी उस खुफ़िआ खजाने का राज मालूम ना था। एक रोज किसी को बताये वगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला, तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था, और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था।                                                  उसी वक़्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा कि खजाने का दरवाजा खुला है। वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कहीं कल रात जब मै ख़जाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा। उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया। उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ, और दरवाजे के पास आया तो ये क्या। ... दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था। उसने जोर जोर से दरवाजा प

सतगुरु का हुक्म (Satguru's Order)

                                   एक रेलवे लाइन के पास काँटा ठीक करने वाला नौकर था। उसके दो बच्चे रेलवे लाइन पर खेल रहे थे। उधर से गाडी का सिगनल हो गया। अब अगर वह दौड़ कर बच्चो को बचाता है तो उसे पोहचने में देर हो जाती और अगर वो काँटा बदल देता तो गाडी गिर जाती और हज़ारो लोग मर जाते।                                    उसने जोर से बच्चो को हुकम दिआ, लेट जाओ। उनमे से इक बच्चा फौरन लेट गया, दूसरा कहने लगा, क्यों लेटूँ? इतने में गाडी आ गयी। जो लेटा था वो बच गया और जो कहता था "क्यों?" वह कट गया। जिसने बाप का हुकम माना वो बच गया।                                    इसी तरह सतगुरु का हुकम ऐबो-पापों से बचाता है। अगर पूछे,'ये बात मुझे क्यों कही', तो यहाँ क्यों कहने की गुजाइंश नहीं रहती।

नामदान ( Nama Daan, Truth and way of God )

                                   महाराज जी से एक इस्त्री कहती है, आप ने जो नामदान मुझे बक्शा है, वो वापिस ले लीजिये।  महाराज जी बोले क्यों?                                     इस्त्री कहने लगी भजन पे बैठती हूँ मन लगता नहीं, भजन होता नहीं और अगर भजन पर नहीं बैठती तो बेचैनी होती है, मूड ख़राब हो जाता है। अब आप बताये मै नामदान वापिस ना करू तो क्या करू?  महाराज जी बोले                                     बेटी एक शर्त पे मै दिया हुआ नामदान वापिस ले सकता हूँ? इस्त्री बोली वो क्या शर्त है महाराज जी?                                 महाराज जी बोले, बेटी मै आटे में नमक डालता हूँ। आप उस आटे में से नमक अलग कर के दिखा दो फिर आप चाहो तो मै अपना दिया हुआ नामदान वापिस ले सकता हूँ। यह सुन कर इस्त्री महाराज के चरणो में गिर पड़ी। और उनकी बात को समझ गयी।                                    संगत जी, गुरु का बक्शा नाम एक रसायन की तरह हमारे तन मन वजूद में घुल जाता है, जो शिष्य का चोला छोड़ने तक मरते दम तक साथ रहता है।  

दया पर संदेह (Doubt on Guru's Mercy)

                         एक बार एक अमीर सेठ के यहाँ एक नौकर काम करता था। अमीर सेठ अपने नौकर से तो बोहत खुश था, लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह ईश्वर को अनाप शनाप कहता और कोसता था।                          एक दिन वह अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था। सयोग से वह ककड़ी कच्ची और कड़वी थी। सेठ ने वह ककड़ी अपने नौकर को दे दी। नौकर ने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बोहत स्वादिष्ट हो। अमीर सेठ ने पुछा- "ककड़ी तो बोहत कड़वी थी, भला तुम ऐसे कैसे खा गए?  नौकर बोला- आप मेरे मालिक हो. रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते है। अगर एक दिन कुछ बेस्वाद या कड़वा भी दे दिया तो उसे सवीकार करने में भला क्या हर्ज़ है?                          अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया। अगर ईश्वर ने इतनी सुख-सम्पदाय दी है और कभी कोई कटु अनुदान या सामान्य मुसीबत दे भी तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं, वह नौकर और कोई नहीं, प्रसिद्ध चिकिस्तिक हकीम लुकमान थे।                          असल में यदि हम समझ सके तो जीवन में जो कुछ भी होता है, सब ईश्वर की दया ही है। ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए ही करता है।

हिफाज़त (Protection by GOD)

                         सूफी संत राबिया अक्सर इबादत करते करते सो जाया करती थी। एक दिन इसी तरह राबिया सो गई, तभी एक चोर आया और राबिया की चादर लेकर भागने लगा लेकिन उसे बाहर जाने का रास्ता दिखाई नहीं दिया। तीन चार बार दीवार से टकराने के बाद चादर एक जगह रखकर इत्मिनान से सोचना शुरू किया। तभी उसे रास्ता दिखाई दिया लेकिन जैसे ही चादर लेकर मुड़ा, फिर से अँधेरा छा गया। इस तरह उसने कई वार कोशिश की किन्तु हर वार जैसे ही वह चादर लेकर भागता, आखो के आगे अँधेरा छा जाता।                           आखिर वो नहीं माना तब गूँज के साथ एक आवाज आई, क्यों आफत मोल ले रहा है, सलामती चाहता है तो हिफाजत से चादर रख दे। इस चादरवाली ने खुद को खुदा के हवाले कर रखा है, इसीलिए शैतान भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो किसी और की क्या मज़ाल जो इसका कुश बिगाड़ सके! यह सुनते ही वह चोर चादर को हिफाज़त से रखकर भाग गया।                          जो लोग खुदा की इबादत में रहते है उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

मौत की ख़ुशी (Maharaj Sawan Singh Ji)

                         ढिलवां  गाओं का जिक्र है ।  एक इस्त्री शरीर शोड्ने लगी तो अपने घर वालो को बुलाकर कहा, "सतगुरु आ गए है, अब मेरी तैयारी है। उम्मीद है कि आप मेरे जाने के बाद रोओगे नहीं क्योंकि मै अपने सच्चे धाम को जा रही हु। इससे ज्यादा और ख़ुशी की क्या बात हो सकती है की सतगुरु खुद साथ ले जा रहे है। उसके बेटे कहने लगे कि हमारा क्या होगा? तो वो शांति से बोली, "आप अपना खुद सम्भालो "।                          जब मौत क वक़्त गुरु सामने आ जाये तो और क्या चाहिए? अगर आप टाट का कोट उतारकर मखमल का कोट पहन ले तो आपको क्या घाटा है? अगर आप इस गंदे देश से निकल कर कुल-मालिक क देश में चले जाए तो आपको और क्या चाहिए?                           अगर कोई आदमी इस दुनिआ में ख़ुशी-ख़ुशी मरता है तो केवल शब्द का अभियासी है बाकी कुल दुनिआ, बादशाह से लेकर गरीब तक, रोते हुए ही जाते है।

दबा हुआ खजाना - बाबा पिप्पल दास जी - Sachkhand Ballan

                            यह कथा बाबा पिप्पल दास जी की गाँव रहीम पुर पंजाब की है। एक माता जिसका नाम प्रेम कौर था। बाबा पिप्पल दास जी की सत्संगन थी।  उन्हों ने नाम दान भी बाबा पिप्पल दास जी से ही प्राप्त किया था। माता जी विधवा थी और उसके 2 बच्चे थे लड़का और लड़की। एक वार बाबा पिप्पल दास जी को माता जी ने न्योता दिया। बेनती की कि आप जी ने प्रोमो गरीबनी के घर लंगर खाने आना है। घर में बहुत गरीबी थी। बहुत मुश्किल से गुजारा चलता था।                                    एक दिन बाबा पिप्पल दास जी गाँव रहीम पुर आये।  माता जी ने बढ़ी श्रद्धा से लंगर शकाया। बाबा जी ने भी बहुत प्रेम से लंगर शका। माता प्रेमो जी ने दोनों हाथ जोड़ कर बेनती की कि महाराज हमारे घर बहुत गरीबी है , और मेरा पति भी नहीं है और 2 बच्चे हैं कोई साधन नहीं है। माता जी ने विरलाप करते आँखों में आंसू निकल आऐ। बाबा जी घट घट की जानने वाले उठे। कहा कि तेरे इस अपने घर में खजाना भरा हुआ है। अभी कही लाओ घर का वेहड़ा जहाँ से खोदो।  सारी उम्र का खजाना जहाँ है। बाबा जी के सहमने ही माता जी ने कही से वो जगह खुदवाई जहाँ से एक देग चांदी से भरे हुए स

दानो की मुठी - बाबा पिप्पल दास महाराज जी - Sachkhand Ballan

                                       एक गाँव में गरीब परिवार रहता था। कनक की कटाई के समह घर के सभी सदस्य बीमार हो गए। कनक की कटाई नहीं होइ थी। जब सभी ठीक हो गए तब तक कटाई का काम ख़त्म हो चुका था यह साखी गाँव मंडा पंजाब की है। वह गरीब आदमी ने सोचा कि अब यह वर्ष कैसे गुजरे गए ? इधर बाबा पिप्पल दास जी गाँव मंडा गए। उस आदमी ने सारी अपनी समस्या गुरु जी को सुनाई। बाबा जी ने इक दानो की मुठ दी और लो इसको अपनी भड़ोली में डाल देना। साथ ही कहा की जितने दाने निकालने हो उतनी ही भड़ोली नंगी करनी है पूरा मुँह नहीं खोलना। उसने वोह दानो की मुठी भड़ोली में डाल दिया। घर वाले सारा साल ही दाने निकाल खाते रहे पर दाने ख़त्म नहीं हुंए। पर एक दिन उन्हों ने यह सोच कर कि इसमें और कितने दाने हैं खोल कर देख लिया। पर जब देखा तो भड़ोली उसे ही तरह भरी पड़ी हुई थी।                                   कहने का भाव कि कि संत एक आदमी के भंडारे को भर सकते हैं और उन्हों के घर किसी भी चीज की कमी नहीं होती। जैसे श्यामी राम जी के भंडारे को भी एक बचन से भर सकते हैं उन्हों के लिए एक भड़ोली इक मुठी से भरना कोई मुश्किल नहीं है। में से - व

पांच पुत्तर गाँव अर्जनवाल - बाबा पिप्पल दस् महाराज जी - Sachkhand Ballan

                            यह कथा गाँव अर्जनवाल पंजाब की है।  ज्ञानी जोगिन्दर सिंह तक़रीबन हर ऐतवार डेरे आते हैं। यह कथा उन्हों की सुनाई हुई है जिन्हो की माता प्रभि थी। पिता का नाम वरिआमा था। प्रभि को ससुराल में आए हुए 8  - 9 साल हो गए थे पर संतान नहीं थी हुई। सास कहती कि इसको शोड देना है इसके कोई संतान नहीं होनी। सास बहुत तंग करती थी और कहती कि लड़के की शादी कहीं और कर देनी है। माता जी बाबा पिप्पल दस् महाराज जी की बहुत मेहमाँ सुन चुकी थी और बाबा जी का बाबा जी का इंतजार करने लगी कि बाबा जी आएं और वह अपनी फर्याद उन्हों के आगे रखे। इधर बाबा पिप्पल दास जी ने एक दिन गाँव अर्जनवाल जाना था। जैसे ही माता प्रभि ने बाबा जी का आने का सुना तो वह सत्गुरों की उडीक करने लगी कि मेरे गुरु जी कब आएंगे।                                   बातये हुए समह अनुसार बाबा पिप्पल दास जी सवेरे गाँव अर्जनवाल पहुँच गए। माता प्रभि बहार निकली तो देखा कि बाबा जी आ रहें हैं। बस अपना सीस चरणों के ऊपर रख दिया। बेनती की कि महाराज मेरी सास मुझे कहती है कि तुझे शोड देना है तेरे संतान नहीं होनी। मेरा वासेबा करो। माता चरणों से

दानों की कोठी - संत बाबा पिप्पल दास महाराज जी - Sachkhand Ballan

                            यह कथा गाँव हरिपुर, पंजाब की है जहां बाबा पिप्पल दास जी महाराज जी अपने सेवक श्यामी राम जी के जाया करते थे। श्यामी राम जी की उम्र तकरीबन 125 साल की हुई है। एक वार श्यामी राम जी ने आप जी की बहुत सेवा की।  बाबा जी बहुत खुश हुए। उस वकत कनक की कटाई का मौसम था। घर वालों ने दाने सूखा कर साफ़ करके कोठी में डालने के लिए रखे हुए थे। वह तब दाने कोठी में डालने वाले ही  कि बाबा पिप्पल दास जी महाराज जी हरिपुर श्यामी राम जी के घर पहुंचे। बाबा जी ने कहा कि कुड़े बीबी आप दाने कोठी में खुद ना पाना हम खुद दाने आप पाएंगे। बाबा जी ने आप ही  धूफ दे के पांच बुक दानो के कोठी में पा दिएऔर बाकि के दाने बाद में डालें।  बाबा जी दानो की कोठी के आगे चारपाई रख बैठ गए। फिर बाबा जी ने बचन कर कहा जाओ आपके भंडारे भरे रहें। बचन किया कि इस कोठी में दाने डालने की जरुरत नहीं। कभी कोठी को खोल कर नहीं देखना। इस में से जितने मर्जी दाने निकाल खाते जाना। [ पुराने ज़माने में मिटटी की कोठीआं होती थी  ऊपर से लेप कर दिया जाता था और नीचे से दाने निकले जाते थे ]                                   श्यामी राम जी

दुखों से छुटकारा (Salvation of Sorrows) - Sant Farid ji

एक दिन एक उदास पति-पत्नी संत फरीद के पास पोहंचे। उन्होने विनय के सवर में कहा, 'बाबा, दुनिआ के कोने-कोने से लोग आपके पास आते है, वे आपसे खुशीआं लेकर लौटते हैं। आप किसी को भी निराश नहीं करते। मेरे जीवन में भी बोहत दुःख है मुझे उनसे मुकत कीजिये।                       फरीद ने देखा, सोचा और झटके से झोपड़े के सामने वाले खम्बे के पास जा पोहंचे। फिर खम्बे को दोनों हाथो से पकड़कर 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाने लगे। शोर सुनकर सारा गाओं इकठा हो गया लोगो ने पुछा कि क्या हुआ तो बाबा ने कहा 'इस खम्बे ने मुझे पकड़ लिए है, छोड़ नहीं रहा है। लोग हैरानी से देखने लगे, एक बजुर्ग ने हिम्मत कर कहा, बाबा सारी दुनिआ आपसे समझ लेने आती है और आप है कि खुद ऐसी नासमझी कर रहे हैं।                          फरीद खम्बे को छोड़ते हुए बोले, 'यही बात तो तुम सब को समझाना चाहता हूँ कि दुःख ने तुम्हे नहीं, तुमने ही दुखो को पकड़ रखा है। तुम छोड़ दो तो ये अपने आप छूट जायेंगे।                           उनकी इस बात पर गभीरता से सोचे तो इस निष्कर्ष पर पोहंचेगे कि हमारे दुःख तकलीफ इसीलिए है क्योंकि हमने वैसी सोच बना रखी है। सब

विश्वाश (Faith)

 आठ साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुठी में लेकर एक दूकान पर जाकर बोला, -- क्या आपके दूकान में ईश्वर मिलेंगे? दुकानदार ने ये बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।  बच्चा पास की दूकान में जाकर एक रुपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा! -- ए लड़के, 1 रूपए में तुम क्या चाहते हो? -- मुझे ईश्वर चाहिए। आपके दूकान में हैं? दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया। लेकिन उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दूकान से दूसरी दूकान , दूसरी से तीसरी, ऐसे करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने क बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पोहंचा।  उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा, -- तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर? पहली वार इक दुकानदार के मुँह से ये बात सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणे लहराई। लगता है इसी दूकान पर ईश्वर मिलेंगे! बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया,  -- इस दुनिआ में माँ के इलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी माँ दिनंभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी माँ अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी माँ मर गयी तो मुझे कौन खिलायेगा? डॉक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ ईश्वर ही तुम्हारी माँ को बचा

अनजाने कर्म का फल ( Karam's Definition - True Work Definition )

एक राजा ब्राह्मणो को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था। राजा का रसोइया खुले आंगन में भोजन पक्का रहा था। उसी समय एक चील अपने पंजे में एक ज़िंदा साप को लेकर राजा के महल के ऊपर से गुजरी। तब पंजो में दबे साप ने अपनी आतम-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने फन से जहर निकला। तब रसोइया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पक्का रहा था, उस लंगर में साप के मुख से निकली जहर की कुछ बुँदे खाने में गिर गई। किसी को कुछ पता नहीं चला। फल-सवरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने आये थे, उन् सब की जहरीला खाना खाते ही मौत हो गयी। अब जब राजा को सारे ब्राह्मणो की मृत्यु का पता चला तो ब्राह्मण-हत्या होने से उसे बोहत दुःख हुआ। ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैंसला लेना मुश्किल हो गया कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा? 1) राजा। .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है...  या  2) रसोइया। ..... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय वह जहरीला हो गया है.....  या  3) वह चील..... जो जहरीला साप लिए राजा के महल के ऊपर से गुजरी...  या  4) वह सांप। .... जिसने अपनी आतम रक्षा में जहर निकाला। ....  बोहत दिंनो तक

जैसा कर्म वैसा फल ( Guru's Lesson )

    एक आदमी ने जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये है, उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही फल भी भोगने पड़ेंगे। यह सुनकर उसे बोहत आश्चर्य हुआ। अपनी आशंका का समाधान करने हेतु उसने सत्संग करने वाले संत जी से पूछा अगर कर्मो का फल भोगना ही पड़ेगा तो फिर सत्संग में आने का क्या फ़ायदा है?                                                              संत जी ने मुस्करा कर उसे देखा और इक ईट की तरफ इशारा करके कहा कि तुम इस ईट को छत्त पर ले जाकर मेरे सर पर फेंक दो यह सुनकर वह आदमी बोला इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा। मै यह नहीं कर सकता। संत ने कहा अच्छा, फिर उसे उसी ईट के भार के बराबर का रुई का गट्ठा बाँध कर दिया और कहा इसे ले जाकर मेरे सिर पे फेंकने से भी क्या मुझे चोट लगेगी??                                                              वह बोला नहीं, संत ने कहा, बेटा इसी तरह सत्संग में आने से इंसान को अपने कर्मो का बोझ हल्का लगने लगता है और वह हर दुःख तकलीफ को परमात्मा की दया समझ कर बड़े प्यार से सह लेता है.सत्संग में आने से इंसान का मन निर्मल होता है और वह मोह माया के चक्कर में होने व

जनेऊ संस्कार - Sakhi Shri Guru Nanak Dev Ji - Guru ki sakhiyan

                        अगर कोई धरम या संस्कार आदमी औरत दोनों को बराबरी  अधिकार नहीं देता तो ऐसे रिवाज या संस्कार को उसी समह बंद कर देना चाहिए। एक ऐसा ही संस्कार है जनेऊ जो सिर्फ आदमी के लिए है और औरत को यह कबूल नहीं करता। इसी लिए श्री गुरु नानक देव जी ने इस संस्कार को धारण करने से मना कर दिया था। ऐसे असमान्य संस्कार जैसे सुनत को भी संत स्वामी कबीर जी ने मना कर दिया था क्योंकि सुनत सिर्फ आदमी की होती है औरत की नहीं हो सकती।                         श्री गुरु नानक देव जी जब 10  साल की उम्र के हुए तब पिता कालू जी ने जनेऊ धारण करने की रस्म को पूरे रीती रिवाज से समारोह किया जिसमे कारज करने के लिए पांधा पंडल को बुलाया। जनेऊ की शास्त्री विद्या के अनुसार जब पंडित गुरु साहिब को जनेऊ पहनाने के लिए आए तो बालक गुरु नानक जी ने पंडित का हाथ पकड़ लिया और पूछा कि आप मुझे जनेऊ धारण कराने जा रहे हो उसका मुझे मुनाफा क्या होगा ? तब पंडित  हैरान होकर गुरु साहिब की और  देखने लगा क्योंकि अब तक  उनसे किसी ने ऐसा सवाल कभी नहीं पुछा था। पंडित जी ने सस्त्रो हिसाब से लाभ बताने लगे कि यह कोई धागा नहीं पवित्र जनेऊ